ईमान वालों के बीच शिर्क कैसे फैला, बाद इसके के वो तौहीद (सिर्फ़ एक ही ईश्वर की पूजा करने) वाले लोग थे।
अल्लाह का बयान नूह अलैहि सलाम की क़ौम के बारे मे:
وَقَالُوا لَا تَذَرُنَّ آلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَلَا سُوَاعًا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسْرًا [سورة نوح: ٢٣]
और उन्होंने कहाः तुम कदापि न छोड़ना अपने पूज्यों को और कदापि न छोड़ना वद्द को, न सुवाअ को और न यग़ूस को और न यऊक़ को तथा न नस्र[[यह सभी नूह़ (अलैहिस्सलाम) की जाति के बुतों के नाम हैं। यह पाँच सदाचारी व्यक्ति थे जिन के मरने के पश्चात् शैतान ने उन्हें समझाया कि इन की मूर्तियाँ बना लो। जिस से तुम्हें इबादत की प्रेरणा मिलेगी। फिर कुछ युग व्यतीत होने के पश्चात् समझाया कि यही पूज्य हैं। उन की पूजा अरब तक फैल गई।]] को।
[सूरह नूह 71:23]
“सलफ ए सालिहीन् (सदाचारी पूर्वज) की एक संख्या से बहुत सारी रिवायतो मे बयान हुआ है, कि ये पाँच देवता धर्मात्मा थे. पर जब उनकी मृत्यु हो गयी, शैतान ने उनके लोगो मे वस्वसा (फुसफुसाहट) किया की उनकी क़ब्रों पर जाएं और बैठा करे. फिर शैतान ने उनके बाद आने वाले नस्लों मे वस्वसा किया की उनकी मूर्तियाँ बना कर रख लें, और इस विचार को खूबसूरत बनाया की (मूर्तियों द्वारा) उन्हे याद रख़ोगे और उनके जैसे अच्छे कर्म करोगे।
फिर शैतान ने तीसरी पीढ़ी को वस्वसा किया कि वो उनकी पूजा अल्लाह सर्वश्रेष्ठ के साथ करे और उनमे वस्वसा किया कि उनके पूर्वज भी यही किया करते थे!
तब अल्लाह ने नूह (अलैहि सलाम) को उनमे भेजा और केवल अकेले अल्लाह की पूजा करने का आदेश दिया। हालांकि, किसी ने उनकी पुकार को स्वीकार नही किया सिवाए कुछ लोगो के। अल्लाह, सर्वशक्तिमान और अतिप्रभावशाली, ने इस पुरी घटना को सूरह नूह मे बताया है।
इबन् अब्बास से रिवायत है: बेशक ये पांच नाम नूह के समुदाय के सदाचारी लोगो के थे । जब उनकी मृत्यु हो गयी तो शैतान ने लोगो मे वस्वसा किया की इन लोगो की मूर्तियाँ बनाई जाएं और इन्हें याद रखने के लिए लोगों के एकत्रित होने की जगह पर लगा दिया जाए, और ऐसा किया गया. हालांकि, उनमे से किसी ने भी इन मूर्तियों की पूजा नही की, और जब उनकी मृत्यु हो गयी और मूर्तियों के बनाने का उद्दैश्य भूल गए तब (अगली पीढ़ी) ने उनकी पूजा शुरू कर दी (1). इस तरह की रिवायते इबन् जरीर अत तबरी और दुसरे बहुत सारे सलफ् (सदाचारी पूर्वज) से भी बयान है (अल्लाह उन पर खुश रहे)
अल दुर्र अल मंसूर (6/269): अबू मुत्तहर से रिवायत करते हुए अबदुल्ला इबन् हुमैद कहते है: अबू जाफ़र अल बाक़िर (मृत्यु 11 हिजरी) से यज़ीद इबन् अल- मुहल्लब का उल्लेख किया गया तो उन्होंने कहा: उसकी उस जगह मृत्यु हुई जहाँ सबसे पहले अल्लाह के अलावा किसी और की पूजा की गई। फिर वद्द् का उल्लेख करते हुए कहा: “वद्द् एक मुस्लिम थे जिनसे लोग मुहब्बत करते थे। जब उनकी मृत्यु हुई, लोग उनकी क़ब्र के आसपास बाबिल की ज़मीन पर एकत्रित होने लगे और विलाप और शोक मनाने लगे। जब इबलीस (शैतान) ने देखा की वह लोग उनके लिए विलाप और शोक व्यक्त कर रहे है तो वह मनुष्य के भेस में उनके पास आया और कहने लगा: मै तुम सब को उनके लिए विलाप और शोक करते हुए देख रहा हूँ. क्यों नहीं तुम उनकी तस्वीर (यानी मूर्ति) बना लेते और अपने एकत्रित होने वाली जगहों पर रख लेते ताकि वह तुम्हें याद रहें. तो लोगों ने जवाब दिया: “हाँ”, और उनहोंने उनकी एक तस्वीर बना कर अपने एकत्रित होने की जगह पर रख दी, जो उन्हें उनकी याद दिलाती रही । जब इबलीस ने देखा कैसे वो उनको (बहुत ज़्यादा ) याद कर रहे हैं, उसने कहा: “क्यों नही तूम लोगो मे से प्रत्येक आदमी इनकी एक जैसी तस्वीर बना कर अपने-अपने घरों मे रख लेते”, फिर सभी ने कहा “हाँ”. फिर सभी घरो ने उनकी तस्वीर बनाली, जिसे वो स्नेह और श्रद्धा से रखते और लगातार वह उन्हे उनकी याद दिलाता रहा । अबू जाफ़र ने कहा: अगली पीढ़ी के लोगो ने देखा की वो (पिछली पीढ़ी) ने क्या किया और समझा. यहा तक कि उन्होनें उसे एक देवता बना लिया और अल्लाह के अलावा उसकी पूजा करने लगे। उन्होंने फिर कहा: “ये सबसे पहली मूर्ति थी जिसे अल्लाह के अलावा पूजा गया और उन्होंने इस मूर्ति को वद्द् पुकारा” (2)
[1] बुख़ारी द्वारा वर्णन(8/534)
[2] अबी हातिम द्वारा वर्णन