बुलुग़ अल्-मराम की व्याख्या – शेख़ सालेह़ अल्-फ़व्जान द्वारा
१ – ज़कात अल्-फ़ीत्र हर मुसलमान पर अनिवार्य (वाजिब) है चाहे वह बड़ा हो, बूढ़ा हो, मर्द हो, औरत हो१।
२ – ज़कात अल्-फ़ीत्र के अनिवार्य होने की बुद्धिमत्ता (हिक्मत ) यह है कि, वह एक मुसलमान के रोज़े (उपवास) के नुक्स को सही करती है, और (इसके द्वारा मुसलमान) जरूरतमंदों को (ई़द के दिन) खाना खिलाता है।
३ – ज़कात अल्-फ़ीत्र की मात्रा (मिक़दार) एक नबवी ‘साअ़’ -صاع से कम नहीं होनी चाहिए, जो कि चार ‘अमदाद’ – أمداد है: औसत, चार-बार, दो-हथेली भरकर। यह लगभग तीन (३) किलो के बराबर होती है२।
४ – ज़कात अल्-फ़ीत्र में वह अन्न (खाना) देना चाहिए जो (अन्न) लोग स्थानीय तौर पर रोजाना खाने के आदी हैं।
५ – ज़कात अल्-फ़ीत्र धन से देने की अनुमति नहीं है। (इसे अन्न द्वारा दिया जाता है)।
६ – ज़कात अल्-फ़ीत्र को देने का उचित समय ई़द अल्-फ़ीत्र की नमाज़ वाली शाम (सूर्यास्त) से लेकर ई़द अल्-फ़ीत्र की नमाज़ के लिए इमाम के आगमन (सूर्योदय) तक है।
ज़कात अल्-फ़ीत्र को (उसके) बताए समय से एक या दो दिन पहले देने की भी अनुमति है। लेकिन इस बात की अनुमति नहीं है कि उसे ई़द की नमाज़ के बाद दिया जाए। अगर उसे अदा करने में देर हो जाए और उसे ई़द की नमाज़ के बाद देना पड़े, तब भी उसे देना अनिवार्य (वाजिब) है, यहां तक कि उचित समय निकल जाए – परंतु वह व्यक्ति ज़कात अल्-फ़ीत्र का प्रतिफल (अजर) प्राप्त नहीं कर पायेगा बल्कि एक आम सदक़ा (दान) का प्रतिफल प्राप्त करेगा।
७ – ज़कात अल्-फ़ीत्र विशेष रूप से निर्धन (गरीबों) के लिए है। ज़कात के पात्र आठ प्रकार के लोगों के अलावा उसे किसी और को नही देना चाहिए, और ना ही किसी दान के कार्य में (उसे बांटना चाहिए)।
अंग्रेज़ी अनुवादक:
जमील फिंच, अबू आदम
२८ रमज़ान, १४३८ हिजरी
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१– ज़कात अल्-फ़ीत्र घर के मुख्य सदस्य द्वारा परिवार के सभी सदस्यों, जिसका वह उत्तरदायी है, की तरफ से दिया जाता है। देखें ज़ाद अल्-मुस्तक़नअ़।
२– इस अनुवाद का उद्देश्य इस विषय पर विचार विमर्श करना नही है, बल्कि आसान तरीके से एक आदरणीय ज्ञानी की ज़कात अल्-फ़ीत्र से संबंधित बातों को लोगों तक पहुंचाना है।