इमाम शम्सुद्दीन मुह़म्मद बिन अह़्मद बिन उस्मान अध्-ध़्हबी (मृत्यु: ७४८ हिजरी के बाद) (अल्लाह उन पर रहम करे) ने कहा:
‘यह माता-पिता पर लागू है कि वे अपने बच्चों को, जो छोटे हैं, सबसे पहले यह सिखाए कि, किस चीज से दूर रहना अनिवार्य है, और क्या करना आवश्यक है, और उनका ईमान क्या है। इसलिए, पिता ने अपने बेटे (बच्चे) को तौह़ीद (अर्थः अल्लाह को एक मानना) का महत्व बताना चाहिए, और यह कि, अल्लाह सारे संसारों का पालनहार है, और वह (अल्लाह) चीजों का विधाता है, और वह (अल्लाह) जीवित रहने के लिए अन्न प्रदान करता है, और मुह़म्मद उसके (अल्लाह के) पैगंबर हैं, और इस्लाम उसका (बच्चे का) धर्म है। ताकि बच्चा इन मामलों से परिचित हो और वह उसे अपने स्वभाव में स्थापित कर ले।
जब बच्चा भेद करने में काबिल हो जाए, तो उसे वुज़ू और नमाज़ सिखाई जाए, और उसे व्यभिचार (ज़िना), चोरी, झूठ, हराम आहार, खून और मरे हुए जानवर आदि खाने के विरुद्ध चेतावनी दी जाए।
और जब बच्चा बड़ा हो जाता है, तो कलम ने जो लिखा है वह होता है (अर्थातः जो उसके नसीब में लिखा गया है वह होता है)।’
[‘मसाएल फ़ी तल्ब अल्-इ़ल्म वा अक़सामीही’ पृष्ठ: २०२-२०३ से / कलिमात पृष्ठ: ७३ से]
अंग्रेज़ी प्रति से: ʿAbbās Abū Yaḥya, Miraath Publications
(अनुकूलित)