नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने कहा: “(तुम) अपने हज्ज के संस्कार मुझसे (सीख) लो।”
हज्ज एक इबादत (उपासना) है जो केवल अल्लाह को समर्पित करनी चाहिए। यह अल्लाह के एक होने (तौहीद) में विश्वास की घोषणा और प्रदर्शन है।
यह समय है अल्लाह को पुकारने का और उसके सिवा किसी और की इबादत करने से अपने आप को पवित्र करने का। वह मुसलमान जो तल्बिया कहता है: लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक, ईन्नल-ह़म्दा वन्नेअ़-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक – जानता है कि यह एक दुआ़ है, जिसका अर्थ है:
“मैं यहाँ हूँ या अल्लाह, मैं यहाँ हूँ। मैं यहाँ हूँ, तेरा कोई साथी नहीं, मैं यहाँ हूँ। यक़ीनन हर प्रशंसा तेरे ही लिए है, और हर इनाम तेरी ही तरफ से है, और सारा राज्य तेरा है, और तेरा कोई साथी नहीं।”
इसलिए मुसलमान को चाहिए कि वह अपने आप को पूर्ण रूप से (मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक) केवल अल्लाह को समर्पित कर दे। कोई भी इबादत मूर्तियों, कब्रों, धार्मिक नेताओं, संतों (जीवित अथवा मृत) अथवा सृष्टि के किसी हिस्से के लिए नहीं करनी चाहिए।
अल्लाह की तौहीद की यह आवश्यकता है की मुसलमान इबादत के सबसे उत्तम तरीक़े का पालन करे। यही तरीक़ा (सुन्नाह) मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) का है, जैसा सहाबा (मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम के साथी) ने समझा, जो मानवता के सर्वश्रेष्ठ लोग थे।
हज्ज अल्लाह की इबादत के लिए मक्का का सफर करना है और पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) के तरीक़े (सुन्नाह) के अनुसार कुछ धार्मिक रस्मो का पालन करना है।
अल्लाह (सर्वशक्तिमान और अतिप्रभावशाली) कहता है:
وَلِلَّـهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا
[سورة آل عمران : ٩٧]
तथा अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का हज्ज अनिवार्य है, जो उसतक राह पा सकता हो
[क़ुर्आन – ३:९७ ]
स्रोत: ‘हज्ज और तौहीद’ डॉक्टर सालेह अल-सालेह द्वारा (अल्लाह उन पर रहम करे)