संक्षेप में सुन्नाह का मतलब है – वो सब जो नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) से संबंधित है जैसे उनके बयान, कार्य और निहित (ख़ामोश रहते हुए दी गई) अनुमति, तथा सुन्नाह दिव्य आकाश वचन (वह़्यी) है।
إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْىٌۭ يُوحَىٰ
عَلَّمَهُۥ شَدِيدُ ٱلْقُوَىٰ
[سورة النجم ٥٣: ٤-٥]
वह तो बस वह़्यी (प्रकाशना) है। जो (उनकी ओर) की जाती है।
सिखाया है जिसे उन्हें शक्तिवान ने।[[इस से अभिप्राय जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं जो वह़्यी लाते थे।]]
[सूरह अल्-नजम ५३:४-५]
इसी तरह नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने सुन्नाह के बारे में बयान किया: – “मुझे क़ुर्आन दिया गया है और उसके साथ वह (सुन्नाह) जो उसके समान है ।”
इसलिए सुन्नाह क़ुर्आन की ज़ोड़ीदार है। वह क़ुर्आन की ही तरह आकाश वचन (वह़्यी) है। सुन्नाह क़ुर्आन से जुड़ी हुई है और उससे अलग नही की जा सकती। बिना सुन्नाह को ध्यान में रखते हुए, क़ुर्आन की काफ़ी आयतों को सही तौर पर समझा नहीं जा सकता, ख़ासकर के वो आयतें जो इस्लामी हुकुम (क़ानून) के बारे में हैं।
स्रोत: “दी पोज़ीशन ऑफ़ सुन्नाह इन दी इस्लामिक लेजिस्लेशन” – शेख़ मुहम्मद अमान अल-जामी (अल्लाह उन पर रहम करे)